जंगलों में ही पड़ा 150 करोड़ का टिम्बर
देहरादून। उत्तराखंड में टिंबर का सालाना पांच सौ करोड़ का कारोबार होता है। टिंबर कारोबार के हिसाब से अक्टूबर से जून के बीच के महीने बेहद अहम हैं। इन 9 महीनों के दौरान करीब दो लाख क्यूबिक मीटर से अधिक टिंबर का कटाई और ढुलाई होती है। इस साल जनवरी और फरवरी माह में हुई बारिश के चलते कई रास्ते टूट गए और जंगलों से टिंबर नहीं उठाया जा सका। वहीं, मार्च से लॉक डाउन के कारण कामकाज ठप पड़ गया है।
ंउल्लेखनीय है कि जंगलों में बिखरा पड़ा करीब डेढ़ लाख क्यूबिक मीटर टिंबर आज भी धूल फांक रहा है। इस टिंबर को डिपो तक लाने के लिए करीब दस हजार ट्रक चाहिए। इसके अलावा 50 हजार क्यूबिक मीटर टिंबर ऐसा है, जिसका कटान नहीं हो पाया। उत्तराखंड में इस टिंबर को स्टोर करने के लिए 35 डिपो बनाए गए हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण ये नीलामी भी बंद पड़ी हुई है। टिहरी रीजन के छह डिपो में मार्च के बाद न तो ढुलाई हई है और न ही नीलामी हो पाई है। लॉकडाउन अविध में अकेले टिहरी रीजन को करीब दस करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है। यही स्थिति प्रदेश के अन्य डिपो की भी है। वन विकास निगम के एमडी मौनिष मलिक का कहना है कि निगम का सालाना टारगेट 500 करोड़ था, जबकि कारोबार सिर्फ 350 करोड़ का ही हो पाया है। निगम को लॉकडाउन के कारण डेढ़ सौ करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं अब, निगम की लॉकडाउन में छूट देने की मांग पर प्रशासन ने कई क्षेत्रों में टिंबर उठाने की अनुमति दे दी है। प्रशासन से तो टिंबर उठाने की इजाजत मिल गई, लेकिन अब दो समस्याएं नई आकर खड़ी हो गई हैं। पहली समस्या श्रमिकों की कमी और दूसरी लकड़ी, ट्रक और श्रमिकों को सैनेटाइजेशन की लंबी प्रक्रिया है। एमडी मौनिष मलिक कहते हैं कि सैनेटाइजेशन प्रक्रिया के चलते ट्रांसपोटेशन में देरी हो रही है। जहां एक दिन में दो सौ ट्रक आते थे, वहां तीस ट्रक टिंबर डिपो तक पहुंच पा रहे हैं। चिंता इस बात है कि अप्रैल, मई के महीने में ही प्रचंड गर्मी होने के कारण जंगलों में सबसे अधिक आग लगती है। ऐसे में जंगलों में काट कर रखे गए टिंबर के आग के चपेट में आने की आशंका गहरा गई है।