खंडहर में तब्दील हुआ जौनसार बावर का अकेल गांव
विकासनगर। उत्तराखंड का पलायन से नाता राज्य गठन के बाद से नहीं है, बल्कि 80 के दशक से है। इसकी तस्दीक जनजातीय क्षेत्र के जौनसार बावर का अकेल गांव कर रहा है। यहां सुविधाओं के अभाव में गांव पूरी तरह खाली हो चुका है। अब ये भुतहा गांव हो गया है। लोगों के खाली मकान खंडहर बन चुके हैं। गांव की दुर्दशा से दुखी लोग सरकार से गांव आबाद करने की मांग कर रहे हैं।
जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के चकराता विधानसभा क्षेत्र के खत कोरू में अकेल गांव है। साल 1984-85 में ये गांव खाली हो गया। अकेल गांव खत पट्टी कोरू के 17 गांवों में से एक था। इस गांव में 7 से 8 परिवार रहते थे। वर्तमान समय में यह लोग जौनसार बावर के विभिन्न गांवों में जीवन बसर कर रहे हैं। जौनसार बावर के इस छोटे से गांव में कभी हंसते-खेलते बच्चों की किलकारियां, पारंपरिक त्यौहार, पनघट पर महिलाओं का गागर लेकर पानी भरना, ओखल में एक साथ अनाज कूटना…ये सब रहा होगा। आज यहां खंडहर के अलावा कभी-कभी हवा की सनसनाहट और पक्षियों की चहचहाट सन्नाटे को चीरती है। यह गांव हरे-भरे देवदार, बांज, बुरांश आदि के वृक्षों से घिरा है। यहां की हरियाली इस बात की गवाही दे रही है कि तीन से चार दशक पहले तक यह छोटा सा गांव आबाद रहा होगा। सुविधाओं के अभाव में धीरे-धीरे इस गांव के लोग पलायन को मजबूर हो गए। आज इस गांव में कुछ अवशेष ही नजर आ रहे हैं। बुजुर्ग ने बताया कि इस गांव के लोग बढ़ई, दस्तकारी और मकानों में नक्काशी का काम करते थे। अपना जीवन यापन करने के लिए पुरुष वर्ग गांव से बाहर जाते थे, जो कई महीनों बाद गांव लौटते थे। ऐसे में गांव में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग ही रहते थे। उन्होंने बताया कि छोटा गांव था, लेकिन जंगली जानवरों का खतरा बना रहता था। इसके बाद धीरे-धीरे ग्रामीण सुख-सुविधाओं की तलाश में अन्य गांवों की ओर पलायन कर गए। बुजुर्ग मेहर सिंह अकेल गांव के निवासी थे। वर्तमान में वो जौनसार बावर के कुन्ना गांव में परिवार समेत रहते हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें अपने गांव की काफी याद आती है। गांव के 7-8 परिवार जौनसार बावर के अलग-अलग गांवों में पलायन कर गए। मेहर सिंह ने कहा कि उनका जन्म और शादी भी अकेल गांव में हुई थी। बुजुर्ग मेहर सिंह ने बताया कि वो काम की तलाश में अक्सर गांव से बाहर रहते थे। गांव लौटने में कई-कई महीने लग जाते थे। आसपास कोई गांव नहीं था। ना ही गांव में बिजली और सड़क सुविधा थी। ऐसे में ग्रामीणों ने गांव से पलायन किया। उन्होंने सरकार से गांव में सुख-सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की, जिससे गांव फिर से आबाद हो सके।