जहाँ निर्वाण रूप में पूजे जाते हैं कार्तिक स्वामी

ऊखीमठ। पट्टी तल्ला नागपुर के शीर्ष पर क्रौंच पर्वत पर विराजमान देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी 360 गाँवों के कुल देवता, ईष्ट देवता व भूमियाल देवता के रूप में पूजे जाते है। क्रौंच पर्वत तीर्थ को प्रकृति ने अपने अनूठे वैभव का भरपूर दुलार दिया है। इस तीर्थ में भगवान कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप में पूजे जाते हैं।

देवलोक कार्तिक स्वामी तीर्थ में पूजा – अर्चना करने से मानव के लौकिक व पारलौकिक दोनों उद्देश्यों की समान रूप से पूर्ति होती है । पुत्र प्राप्ति के लिए इस तीर्थ को माना गया है। भगवान कार्तिक स्वामी के देव सेनापति होने के कारण तैतीस करोड़ देवी – देवता क्रौंच पर्वत तीर्थ में पाषाण रुप में जगत कल्याण के लिए तपस्यारत है ।

वेद पुराणों में वर्णित है कि एक बार शादी की बात को लेकर गणेश जी व कार्तिक स्वामी दोनों में झगड़ा हो गया। जब दोनों भाईयों का झगड़ा शिव पार्वती तक पहुँचा तो शिव पार्वती ने एक युक्ति निकाली कि जो सर्व प्रथम चारों लोक व चौदह भुवनों की परिक्रमा करके आयेगा उसकी शादी पहले कर दी जायेगी। माता – पिता की आज्ञा सुनकर भगवान कार्तिक स्वामी अपने वाहन मोर में बैठे और विश्व परिक्रमा के लिए चले गये।

माता – पिता की आज्ञा सुनकर गणेश जी बडे़ परेशान हो गये कि मेरे वाहन मूसक को विश्व परिक्रमा करने के लिए युग बीत जायेगें। वैसे मन ही मन  परेशान रहे तो कुछ समय बाद वे गंगा स्नान करके आये तथा शिव – पार्वती की तीन परिक्रमा कर कहने लगे कि माता – पिता जी वेद पुराणों में माता – पिता को स्वर्ग से उत्तम माना गया है। आपकी शर्तों के अनुसार मैंने विश्व परिक्रमा कर ली है, इसलिए आप मेरा विवाह करवाय। पुत्र गणेश की बातें सुनकर शिव – पार्वती परेशान हो गये मगर आखिरकार उन्होंने विश्वरुप की पुत्री रिद्धि – सिद्धी से गणेश की शादी की। समय रहते गणेश को शुभ और लाभ दो पुत्रों की प्राप्ति हुई। लम्बा समय व्यतीत होने के बाद जब देव सेनापति कार्तिक स्वामी चारों लोक व चौदह भुवन की परिक्रमा कर लौटे तो रास्ते में उन्हें देव ऋषि नारद मुनि ने सारा वृतान्त सुनाया।

माता – पिता का छल सुनकर भगवान कार्तिक स्वामी बडे़ क्रोधित हुए तथा अपने शरीर का खून पिता शिवजी तथा मांस माता पार्वती को सौंपकर मात्र हड्डियों का ढांचा लेकर उत्तराखण्ड के क्रौंच पर्वत तीर्थ पर जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हो गये। कार्तिक स्वामी तीर्थ स्थान की खोज आज से लगभग 700 वर्ष पूर्व मानी जाती है।

लोक मान्यताओं के अनुसार इस तीर्थ की खोज डुगरी – चापड निवासी हेमतू बुटोला ने की थी। उत्तर भारत में भगवान कार्तिक स्वामी का यह अकेला तीर्थ है। यहाँ पर भगवान कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप में पूजे जाते हैं जबकि दक्षिण भारत में भगवान कार्तिक स्वामी बाल्यावस्था में घर- घर में पूजे जाते है। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिक स्वामी को मुरगन, गांगेय,  आग्नेय, सुब्रामण्यम नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के कुमार खण्ड में भगवान कार्तिक स्वामी की महिमा को विस्तृत रुप में वर्णन किया गया है।

शिव पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी नारद जी से कहते हैं, हे! नारद पृथ्वी के प्रथम द्वार पर कुमार लोक स्थित है, जहाँ पर देव सेनापति कार्तिक स्वामी निवास करते हैं, उसलोक के कण – कण में महान शान्ति की अनुभूति होती है । इसलिए यह तीर्थ कुमार लोक के नाम से भी जाना जाता है। इस तीर्थ को प्रकृति ने अपने अनूठे वैभव का भरपूर दुलार दिया है। इस तीर्थ से हिमालय की चमचमाती पर्वत श्रृंखलाएँ व अलकनन्दा, मन्दाकिनी नदियों की सैकड़ों फीट गहरी खाई को एक साथ देखा जा सकता है। इस तीर्थ में जून माह में महायज्ञ की परम्परा 1942 से चली आ रही है। कार्तिक मास की वैकुण्ठ चतुर्दशी की रात्रि को इस तीर्थ में विश्व कल्याण के लिए अखण्ड जागरण किया जाता है।

वर्तमान समय में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग द्वारा करोड़ों रुपये की लागत से कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया जा रहा है जिससे स्थानीय पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा।

लक्ष्मण सिंह नेगी, वरिष्ठ पत्रकार, ऊखीमठ।

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