खनन माफिया चीर रहे नदियों का सीना, प्रशासन ‘खामोश’
गजियावाला क्षेत्र में बेरोकटोक हो रहा अवैध खनन
प्रशासन की खामोशी से उठ रहे सवाल
देहरादून। शासन प्रशासन के अवैध खनन रोकने के लाख दावों के वाबजूद खनन माफिया हाईकोर्ट के आदेशों को ताक पर रख कर नदियों का सीना चीर रहे है, इसे जलीय वनस्पतियों के साथ ही जलीय जीवजन्तुओं पर संकट मंडरा रहा, साथ ही भूजल का स्तर कम होने से नदियां, नालों का पानी सूख रहा है। देहरादून की नदियों नालों में अवैध रूप से खनन हो रहा है। इस मामले में हाईकोर्ट के आदेशों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। किन्तु प्रशासन इस मामले में चुप बैठा है। जिससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे है।
उत्तराखंड की शराब और खनन पर निर्भरता इस कदर बढ़ गई लगती है कि बार-बार सवाल उठाए जाने के बाद और कोर्ट की फटकार के बाद भी सरकार इनका कोई विकल्प ढूंढने को तैयार नहीं दिखती। पूरे राज्य से खनन माफिया की मनमानी की खबरें आ रही हैं और सरकार खामोश बैठी है। हाईकोर्ट ने 3 दिन पहले ही सरकार से पूछा कि प्रतिबंध के बावजूद नदियों में भारी मशीनों से खनन की अनुमति क्यों दी जा रही है। इधर, देहरादून में मुख्यमंत्री आवास से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर नहर में भारी मशीनों से खनन धड़ल्ले से जारी है, मगर जिलाधिकारी इस बारे में बात करने को तैयार ही नहीं हैं।
देहरादून के ही विकासनगर में खनन करने वाले ने यमुना नदी की जलधारा तक मोड़ दी, लेकिन जिला प्रशासन उस पर कोई कार्रवाई करने के बजाय मामले की लीपापोती में ही जुटा रहा। देहरादून के बिष्ट गांव के नजदीक गढ़ी-डाकरी नगर में भारी मशीनों से धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है और जिलाधिकारी इस मामले पर भी कुछ नहीं बोल रहे हैं। बिष्ट गांव के प्रधान सोहन सिंह पंवार बताते हैं कि 6-7 मशीनों से खनन किया जा रहा है। इन मशीनों से नहर की मिट्टी को भी खोदा जा रहा है जिसकी वजह से नहर के स्वाभाविक प्रवाह पर असर पड़ सकता है। लेकिन इस बारे में न तो खनन करने वाले कुछ कहने को तैयार हैं और न ही जिला प्रशासन स्थानीय लोगों की बात सुन रहा है। पंवार कहते हैं कि अनियंत्रित खनन की वजह गजियावाला पुल पर भी खतरा है। मसूरी बाइपास पर बने इस पुल को कोई नुकसान हुआ तो आठ-दस गांवों की 15-20 हजार की आबादी पर सीधे फर्क पड़ेगा और वह अपने घरों में कैद हो जाएगी। किन्तु प्रशासन स्थानीय लोगों की सुनवाई कोई तैयार नही दिखाई दे रहा है।