चला गया लोकगायकी का ‘अनमोल हीरा’

देहरादून। प्रसिद्ध  लोकगायक  व  दिल्ली सरकार में उत्तराखंड भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष  एवं उत्तरांचल भ्रातृ सेवा संस्थान के मुख्य सलाहकार हीरा सिंह राणा का दिल का दौरा पडऩे से शनिवार तड़के 2.30 बजे उनके दिल्ली स्थित विनोद नगर आवास में निधन हो गया। उनके निधन से प्रदेश के लोक संगीत को अपूर्णनीय क्षति हुई है।

उत्तराखण्ड के प्रमुख गायक कलाकारो में हीरा सिंह राणा का नाम प्रथम पंक्ति में आता है । हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला डंढ़ोली जिला अल्मोड़ा में हुआ उनकी माताजी स्व: नारंगी देवी, पिताजी स्व: मोहन सिंह थे। राणा प्राथमिक शिक्षा मानिला में हुई। उन्होंने दिल्ली सेल्समैन की नौकरी की लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इस नौकरी को छोड़कर वह संगीत की स्कालरशिप लेकर कलकत्ता चले गए और संगीत के संसार में पहुँच गए। इसके बाद हीरा सिंह राणा ने उत्तराखंड के कलाकारों का दल नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974, हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971) , मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987, के साथ उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए काम किया। इस बीच राणा जी ने कुमाउनी लोक गीतों के 6- कैसेट ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ भी निकाले। उनके निधन पर लोक गायक रज्जू बिष्ट, गणेश लसियाल,अर्जुन सेमल्टियां, केवल पुंडीर, पन्नू गुुुसाईं,समेत  कई कलाकारों, बुद्धिजीवियों  समेत कई लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया है।

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