जानेमाने लोकगायक जीतसिंह नेगी का निधन

देहरादून। उत्तराखण्ड के जानेमाने लोक गायक, रंगकर्मी, कवि, गीतकार, रचनाकार जीत सिंह नेगी का रविवार को  निधन हो गया वह 94 वर्ष के थे।  जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1925 को पौड़ी के पैडलस्यूं पट्टी के अयाल गाँव  में  रूपदेवी नेगी और  सुल्तान सिंह नेगी के घर मे हुआ था। वह छोटी  उम्र में अपने पिता के साथ बर्मा चले गये, जहाँ उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। वहीं गीत-संगीत के प्रति उनका रूझान बढ़ा। इसके बाद उन्होंने लाहौर में भी पढाई की।

गीत-संगीत का उनका सफर छात्र जीवन से शुरू हुआ। 1942 में पौड़ी से स्वरचित गढ़वाली गीतों का सफल गायन किया। इसके बाद उन्होंने  कभी पीछे मुड़कर नही देखा। 1949   उनके जीवन मे खुशियां लेकर आया। जब सर्वप्रथम किसी गढ़वाली लोकगायक को  यंग इंडिया ग्रामोफोन कम्पनी ने मुम्बई आमंत्रित किया।   मुुंबई में  उनके छह गीतों की रिकार्डिंग हुई। ये गीत  सुपर  डुपर हिट हुए, और नेगी जी  लोगों के दिलों पर छा गए। 1952 को गढ़वाल भातृ मण्डल मुम्बई के तत्वावधान में जीत सिंह नेगी ने  ‘भारी भूल’  नाटक का सफल मंचन किया। 1954-55 में हिमालय कला संगम, दिल्ली के मंच से उक्त नाटक का निर्देशन व मंचन किया। नेगी ने टिहरी नरेश के सेनापति माधो सिंह भण्डारी द्वारा मलेथा गाँव की कूल के निर्माण की रोमांचक घटना पर आधारित नाटक ‘मलेथा की कूल’ की रचना की। जिसका मचन 1970 में देहरादून में किया गया। इसके अलावा गढ़वाली लोक-कथाओं के प्रसिद्ध नायक बांसुरी वादक जीतू बगड़वाल के जीवन पर गीत नृत्य नाटक ‘जीतू बगड़वाल’ का क्रमश: 1984, 1987 में देहरादून और चण्डीगढ़ में मंचन हुआ। जीत सिंह नेगी के गीत- ‘तू होली ऊँची डाँड्यू मां वीरा घसियारी का भेष माँ’ का उल्लेख भारतीय जनगणना सर्वेक्षण विभाग ने सन् 1961 में सर्वप्रिय लोकगीत के रूप में किया । जीत सिंह नेगी के कई गीत नाटिका आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ से प्रसारित  हुए।  ‘रामी’ का हिन्दी रूपांतरण दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारण हुआ। जीत सिंह नेगी की कई रचनाओं के चलचित्र बन चुके हैं। 1957 में एच.एम.बी. एवं 1964 में कोलम्बिया ग्रामोफोन कम्पनी के लिए स्वरचित आठ गढ़वाली गीतों को अपनी मधुर आवाज देकर एक कीर्तिमान बनाया। चर्चित गढ़वाली फिल्म ‘मेरी प्यारी बोई’ के गीत-संवाद द्वारा अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे। जीत सिंह नेगी को ‘लीजेंडरी सिंगर’ सम्मान से नवाजा गया था। उनके साथ ही ‘यंग उत्तराखंड लाइफ टाइम अचीवमेंट’ सम्मान से लोकगायक चंद्र सिंह राही को नवाजा गया। यही नहीं जीत सिंह नेगी के गीतों को संस्कृति विभाग ने पुस्तक के रूप में संकलित किया है। यह उनके लिए किसी खास सम्मान से कम नहीं है। म्यारा गीत नाम की इस पुस्तक में नेगी के 1950 व 60 के दशक में गाए गीत शामिल किए गए हैं।  वे पहले ऐसे गढ़वाली लोकगायक  हैं, जिनके किसी गीत का आल इंडिया रेडियो से सबसे पहले प्रसारण हुआ था। 1950 के दशक की शुरूआत में रेडियो से तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा-घसियारी का भेष मां-खुद मा तेरी सड़क्यां-सड़क्यों रूणूं छौं परदेश मा…। गीत प्रसारित हुआ तो उत्तराखंड से लेकर देश के महानगरों तक प्रवासी उत्तराखंडियों के बीच पलक झपकते ही बेहद लोकप्रिय भी हो गया।  जीत सिंह नेगी के कुछेक पुराने गीत उत्तरााखण्ड रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने अपनी आवाज में रिकाॅर्ड किए।  जो बेहद लोकप्रिय हुुुए।  नरेंद्र सिंह नेगी ने जीत सिंहजी के जो गीत नए सिरे से स्वरबद्ध करके पेश किए, उनमें ‘घास काटिक प्यारी छैला रूमुक ह्वैगे घर ऐजा…’, लाल बुरांश को फूल सी सूरज ऐगे पहाड़ मा…, ‘चल रहे मन मथ जंयोला कैलाशू की छांव रे-बैठीं होली गौरा भवानी शिवजी का पांव रे…’ और ‘तू होली उंचि डांड्यूं मा बीरा घसियारी का भेष मा…, शामिल हैं’।

 

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