पहाड़ी पार्टी लड़ेगी जनमुद्दों की लड़ाई : शैलेन्द्र

देहरादून । नवोदित पहाड़ी पार्टी  के  चौबट्टाखाल विस क्षेत्र के अध्यक्ष शैलेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पलायन को  उनकी पार्टी ने अपने प्रमुख एजेंडे  में सबसे ऊपर  रखा है।
पहाड़ से हो रहे पलायन पर  चौबट्टाखाल विस क्षेत्र के  समाजसेवी व पहाड़ी पार्टी के  युवा नेता शैलेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि पहाड़ की जवानी और  पानी कभी भी पहाड़ के काम नहीं आया है।  इसके लिए राजनीतिक पार्टियां  ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। पलायन रोकने के लिए न तो कोई ठोस कार्य योजना तैयार की  गई , ना ही इस ओर  किसी ने ध्यान दिया, जिसका खमियाजा पहाड़ के युवाओं को भुगतना पड़ रहा है।

शैलेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र में  रोजगार के साधन मौजूद हैं, लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव के चलते यह आजीविका का साधन नहीं बन पाए। सरकार महिलाओं, युवाओं के लिए रोजगार के साधन  के साथ ही  गुणवत्तापरक शिक्षा, गांव में बिजली, पानी की व्यवस्था,  बेहतर स्वास्थ्य सेवा, क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछा कर  पलायन को पूरी तरह  से रोक  सकती थी, पर जनप्रतिनिधियों ने  इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। सरकार  पहाड़ में बागवानी, कृषि, पशुपालन, कुकट पालन को बढ़ावा देती और इसके लिए सुविधाएं उपलब्ध कराती तो आज  गांवों में  पलायन के चलते सन्नाटा नहीं पसरा होता। रावत ने कहा कि युवा  बेहतर शिक्षा और रोजगार के लिए पलायन कर रहा है, क्योंकि पहाड़ में इन दोनों की नितांत कमी है। पहाड़ से पलायन करने वालों में 42 फीसदी 26 से 35 उम्र के युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि पलायन की पीड़ा क्या होती मैं  अच्छी तरह से जानता हूँ,  क्यों कि मैं भी पलायन का दर्द झेल रहा हूँ। अब  पहाड़ में ही रहकर पलायन रोकने के लिए जनता के साथ मिलकर काम करूँगा। शैलेन्द्र ने कहा कि रोजगार के नाम पर सरकारों ने युवाओं को सुनहरे सपने दिखाये, बहुत से वादे किए लेकिन जमीनी स्तर पर रोजगार के नाम पर कोई भी कार्य नहीं किए गए, जिसका नतीजा यह हुआ कि युवा मजबूर होकर रोजगार की तलाश में बड़े शहरों का रुख करने को विवश हो रहे हैं। समाजसेवी रावत ने कहा कि जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है। गांव के गांव खाली हो गए हैं।, लेकिन सरकार के  नुमाइंदे  समस्या पर ध्यान देने के बजाय एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने में लगे हुए हैं। चुने हुए जनप्रतिनिधियों द्वारा पलायन के  नाम पर राजनीति की जाती है , जो कि निंदनीय है। ये समय राजनीति करने का नहीं, बल्कि पलायन को कैसे रोका जाए, इस पर आत्ममंथन करने का है। चुनाव के समय लोगों की समस्याओं को सुलझाने का दावा तो सभी पार्टियां करती  है लेकिन उनके  ये दावे सिर्फ खोखले साबित  होते हैं।। राज्य में पलायन करने वाले कुल लोगों में से, रोजगार की तलाश में सबसे अधिक 50 प्रतिशत लोग पहाड़ से पलायन कर गए, इसके बाद 15 प्रतिशत लोगों ने शिक्षा के लिए पलायन किया है। उत्तराखंड में कोई भी सरकार और राजनैतिक दल इससे निपटने के लिए ठोस उपाय नहीं कर पायी है। रावत के अनुसार पलायन का बड़ा कारण सुदूर क्षेत्रों में समर्थ-संवेदनशील शिक्षा, चिकित्सा, और रोज़गार का न होना है। स्कूल व प्राथमिकता चिकित्सा केन्द्र तो हैं, लेकिन उनमें डॉक्टर व मास्टर  ही नहीं हैं। रोज़गार की योजनाएं हैं, लेकिन क्रियान्वयन नहीं है।  उन्होंने कहा शिक्षा, चिकित्सा और रोज़गार जीवन की बुनियादी जरूरतों में से एक हैं। इनकी पूर्ति होनी ही चाहिए। आज उत्तराखंड के पहाड़ों में पलायन एक बड़ी समस्या का रूप धारण कर चुका है। इस समस्या से निपटने के लिए यदि तुरंत कोई उपाय नहीं किए गए तो पहाड़ की लोकसंस्कृति पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा सकता है।  उन्होंने कहा कि पहाड़ी पार्टी जनता के सहयोग से जनमुद्दों की लड़ाई लड़ेगी।

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