धूमधाम से मनाया गया हिलजात्रा
पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ के सोरघाटी के कुमौड़ गांव में आस्था और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक हिलजात्रा धूमधाम के साथ मनाया गया। इस दौरान लोगों ने भगवान वीरभद्र का अवतार माने जाने वाले लखिया बाबा का आशीर्वाद लिया। सोरघाटी पिथौरागढ़ में सावन और भादौ के महीने को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। सातूं आठूं से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है। हिलजात्रा का शाब्दिक अर्थ है कीचड़ का उत्सव। संभवतः बरसात के दिनों में इस पर्व के होने से इसके साथ यह नाम जुड़ा है। ये पर्व पूरे भारतवर्ष में केवल पिथौरागढ़ जिले में ही मनाया जाता है। इस हिलजात्रा की असल शुरूआत भी हुयी पिथौरागढ़ जिले के इसी कुमौड़ गांव से। कुमौड़ गांव की इस हिलजात्रा का इतिहास करीब 500 साल पुराना है। कहा जाता है कि इस गांव के चार महर भाईयों की बहादुरी से खुश होकर नेपाल नरेश ने यश और समृद्धि के प्रतीक ये मुखौटे उन्हें इनाम में दिये थे। तभी से नेपाल की ही तर्ज पर ये पर्व सोरघाटी पिथौरागढ़ में भी बढ़ी धूमधाम से मनाया जाता रहा है। इस पर्व में दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर दर्शकों को रोमांचित करते हैं। मैदान में ये पात्र हुक्का चिलम पीते मछुवारे ,शानदार बैलो की जोड़ियाँ , छोटा बल्द , बड़ा बल्द , अड़ियल बैल, हिरन चीतल, ढोल नगाड़े, हुड़का, मजीरा , खड़ताल और घंटी की संगीत लहरी के साथ ही नृत्य करती नृत्यांगनाएँ , कमर में खुकुरी और हाथ में दंड लिए रंग बिरंगे वेश में पुरुषो के साथ ही धान की रोपाई का स्वांग करती महिलायें ऐसा नजारा पेश करते है कि हर कोई मन्त्र मुग्ध हो जाता है। ये सभी पात्र पहाड़ के कृषि प्रेम को भी दर्शाते है। इस पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है। जिसे भगवान वीरभद्र का ही अवतार माना जाता है। अचानक ही गाँव से तेज नगाड़ो की आवाज आने लगती है जो हिलजात्रा के प्रमुख पात्र लाखिया भूत के आने का संकेत है। ढोल नगाड़ो की आवाज सुनते ही सभी पात्र इधर उधर पंक्तियों के बैठ जाते है और पूरा मैदान खाली करा दिया जाता है। तभी पूरा इलाका लखिया बाबा की जय के नारों के साथ गूंज उठता है । ठीक उसी पल दोनों हाथो में काला चँवर लिए काली पोशाक में बेहद डरावनी भेष भूषा में लाखिया भूत मैदान में आता है। जिसके गले में रुद्र्राक्ष की माला है और उसकी कमर में लोहे की चैन बंधी होती है जिसे लाखिया के गणों ने पकड़ा होता है। लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद इस पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण है। सभी लोग अक्षत और फूलो से लाखिया भूत की पूजा अर्चना करते है और घर परिवार , गाँव की खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगते है। लखिया लोगों को सुख और समृद्धि का आशिर्वाद देने के साथ ही अगले वर्ष आने का वादा कर चला जाता है। सदियों से मनाये जा रहे इस पर्व को हर साल बडे हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे देखने देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग यहां पहुंचते हैं । इस अद्भुत हिलजात्रा मैं अभिनय करने वाले पात्रों के साथ ही दूर-दूर से यहां पहुंचने वाले दर्शक भी एक अलग ही रोमांच का अनुभव करते हैं। हिलजात्रा पर्व का आगाज भले ही महर भाईयों की वीरता से हुआ हो लेकिन वक्त के साथ साथ इसे कृषि पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। धान रोपती महिलाए और बैलों को हांकता हलिया पहाड़ के कृषि जीवन को दर्शाते है।