गंगा और यमुना की सहायक नदियों का होगा संरक्षण

उत्त्तरकाशी। रिवर एंड स्प्रिंग अथॉरिटी कार्यक्रम के तहत पहले चरण में गंगा और यमुना की आठ सहायक नदियों का संरक्षण किया जाएगा। वहीं 18 जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया जाएगा। वन विभाग की ओर से इनकी कार्ययोजना तैयार कर डीपीआर शासन को भेजने की कार्यवाही की जा रही है। इनके संरक्षण से जलवायु और पारिस्थितिक तंत्र को मजबूती मिलेगी, तो वहीं स्थानीय लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। लगातार हो रहे मौसम परिवर्तन के कारण गंगा और यमुना नदी की सहायक नदियों में लगातार जल प्रवाह कम हो रहा है। इस कारण इन नदियों से जुड़ी आजीविका और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इनके संरक्षण के लिए रीवर एंड स्प्रिंग अथॉरिटी कार्यक्रम के तहत वन विभाग की ओर से योजना तैयार की गई है। इस कार्यक्रम के तहत जनपद में 20 सहायक नदियों और 60 जलस्रोतों का सर्वे और स्थलीय निरीक्षण कर चयनित किया गया।प्रथम चरण में जनपद की आठ सहायक नदियों और 18 जलस्रोतों के संरक्षण और पुनर्जीवित करने का कार्य किया जाएगा। वहीं इन सहायक नदियों के जल से जनपद के हजारों किसानों की आजीविका चलती है। तो कई लोग मत्स्य पालन, घराट आदि को स्वरोजगार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं। जिले में 18 जल स्रोतों के संरक्षण के लिए 7.64 करोड़ लागत की कार्ययोजना स्वीकृत है, जिसके सापेक्ष उत्तरकाशी वन प्रभाग को 1.40 करोड़ की धनराशि हस्तांतरित की जा चुकी है। इसी तरह आठ सहायक नदियों के संरक्षण के लिए 16.02 करोड़ की लागत की कार्ययोजनाएं तैयार की गई हैं। इनमें सहायक नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र के ऊपरी हिस्सों में वन विभाग और निचले हिस्सों में ग्राम्य विकास विभाग की ओर से कार्य किया जाएगा। वन प्रभाग के एसडीओ मयंक गर्ग ने बताया कि जनपद की वरुणा गाड, गमरी गाड, नगुण गाड, खुरमोला गाड, जलकुर गाड, केदारगंगा, बर्नीगाड, कमल नदी के सरंक्षण के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है।

 

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