कृषि से जुड़ी हैं सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की जड़ें : राज्यपाल

रुद्रपुर। राज्यपाल गुरमीत सिंह ने गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर में तीन दिवसीय 17वें कृषि विज्ञान सम्मेलन एवं प्रदर्शनी समारोह का शुभारंभ किया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारा देश सदियों से कृषि प्रधान देश रहा है। यहाँ की पवित्र भूमि न केवल अन्न उत्पादन में समृद्ध है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की जड़ें भी कृषि से जुड़ी हुई हैं। हमारे सभी प्रमुख त्योहार भी कृषि से जुड़े हुए हैं। उन्होने कहा कि भारतीय किसानों की मेहनत और उनकी सहनशक्ति ने हमें खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया है, किन्तु आज हमें जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों की घटती उपलब्धता, और आधुनिक तकनीकों के समावेश जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए आज हमें अधिक उत्पादन के साथ ही सतत कृषि को अपनाने की आवश्यकता है। राज्यपाल ने कहा कि बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए हम अधिक से अधिक उत्पादन करें, यह हमारी नीतियों और अनुसंधान का उद्देश्य होना चाहिए। आज के परिपेक्ष्य में जल संरक्षण, जैविक खेती, प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग, और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली जैसी तकनीकों को अपनाना अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में मिट्टी का कटाव, जल संकट और जलवायु परिवर्तन कृषि को प्रभावित कर रहे हैं। हमें इन चुनौतियों से निपटने के लिए पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का सामंजस्य बिठाना होगा। 21वीं सदी की कृषि केवल परंपरागत तरीकों पर निर्भर नहीं रह सकती, हमें नवाचारों और तकनीकी विकास को अपनाना होगा। ड्रोन तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो तकनीक, जैव प्रौद्योगिकी और स्मार्ट खेती जैसे नवाचार किसानों की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं और उनके जीवन स्तर को सुधार सकते हैं। उन्होने कहा कि सरकार और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर ऐसी योजना बनानी होगी जिससे तकनीकी ज्ञान और संसाधन सीधे किसानों तक पहुँच सकें। उन्होने कहा कि किसानों को सरकारी योजनाओं, वित्तीय सहायता, उचित बाजार मूल्य और नवीनतम शोधों और अनुदानों की पूरी जानकारी होनी चाहिए जिससे वे अपने अधिकारों और लाभों का सही ढंग से उपयोग कर सकें। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर ऐसे मंच तैयार करने होंगे जहां किसान अपनी फसलों के उचित मूल्य प्राप्त कर सकें और आधुनिक खेती की जानकारी भी हासिल कर सके। राज्यपाल ने कहा कि किसानों को मृदा परीक्षण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वे अपने खेत की मिट्टी की पोषण स्थिति समझ सके। फसलचक्र और मिश्रित फसल प्रणाली को अपनाने से मृदा की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है। राज्यपाल ने कहा कि जल कृषि की आधारशिला है, हमें वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि सूखे की स्थिति में जल उपलब्ध हो सके। उन्होने कहा कि सौर ऊर्जा और हरित ऊर्जा की तकनीकें अपनाते हुए कृषि क्षेत्र में आयोजित शोध की उपयोगिता को बढ़ावा देने से कृषि की उत्पादन लागत घटेगी। रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद, हरी खाद और गोबर की खाद जैसी पारंपरिक विधियों को पूर्ण प्रचलन में लाना चाहिए। उन्होने कहा कि हमें भंडारण की नवीन तकनीकी, फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को रोकने के लिए कोल्ड स्टोरेज एवं आधुनिक वेयरहाउसिंग तकनीक को अपनाना आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए जलवायु अनुकूल फसलें विकसित करनी होगी जो कम पानी और उच्च तापमान में भी अधिक उपज दे सकें। कृषि वानिकी एवं कृषि प्रणाली अपनाने से कृषि की विविधता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि भौगोलिक दृष्टि से उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों की भी अपनी विशेषताएं एवं समस्याएं हैं। इन क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि कम मात्रा में उपलब्ध होने के साथ-साथ यहां खेती के लिए सिंचाई के संसाधनों की अत्यंत कमी है। उन्होने कहा कि अभी भी इन क्षेत्रों के किसान पुरानी फसल प्रजातियों तथा परंपरागत उत्पादन तकनीक अपनाकर ही खेती कर रहे हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में अभी भी वांछित सुधार की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड में पारंपरिक फसलें जैसे मोटे अनाज और विभिन्न स्थानीय फसल प्रजातियों का आज भी कृषि उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने कहा कि इन फसलों में कीटों और सूखे की स्थिति के प्रति प्रतिरोधक क्षमता, बेहतर स्वाद, सुगंध और औषधीय गुण जैसे अद्वितीय गुणों से परिपूर्ण हैं। इन स्थानीय फसल प्रजातियों को संरक्षित करते हुए इनके उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।