पांडवों के अस्त्र-शस्त्र देखने हैं तो चले आइए नारी गांव
ऊखीमठ। मानव जाति ने आसूरी प्रवृत्तियों पर विजय पाने के लिए भक्ति से ही शक्ति का संचय किया है। जगत के सभी क्षेत्रों में शक्ति के ही विविध रूपों की सच्चे साधक पूजा करते हैं, क्योंकि बिना शक्ति के कहीं भी सम्मान ही नहीं मिल सकता है। शक्ति की साधना को ही समस्त कार्यो की सिद्धि माना जाता है। सर्व शक्तिमान देवताओं को भी सदा ही अपनी विपदाओं के निवारणार्थ इसी आध्या शक्ति की उपासना करनी पड़ी। वास्तव में जग जननी ने ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ की त्रिवेणी से देवताओं को अमरत्व प्रदान किया है।
सम्पूर्ण भारत में इस मातृशक्ति पर विश्वास रखने वालों की संख्या देवभूमि उत्तराखण्ड में सबसे अधिक है। भारतवर्ष की पावन भूमि में इस मातृशक्ति के अनेक रुपों की उपासना होती है किन्तु देवभूमि उत्तराखंड की माटी में महामाया अनेक रुपों में पूजित है। रुद्रप्रयाग जनपद के अन्तर्गत पट्टी तल्ला नागपुर अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से साधना के क्षेत्र में अपना सर्वोत्कृष्ट स्थान रखता है। वास्तव में सिद्धि पाने के लिए साधना सदा शान्त, एकान्त और सिद्ध स्थलों में ही लाभप्रद होती है। सच्चा श्रद्धालु अपनी विश्वासमयी भावनाओं से जगजननी माँ के किसी न किसी रुप में दर्शन पा ही लेता है। तल्ला नागपुर वास्तव में ऐसी मुख्य रमणीक देवस्थली है जहाँ प्रवेश द्वार रूद्रप्रयाग से लेकर देव सेनापति कार्तिक स्वामी की तपस्थली क्रौंच पर्वत तीर्थ तक शक्तिदात्री माँ के अनेक सिद्धपीठ विद्यमान है इसमें से जनपद मुख्यालय से 13 किमी की दूरी पर सतेराखाल के निकटवर्ती नारी गाँव में भगवती चण्डिका भवानी के तीर्थ में जो मनुष्य श्रद्धामयी भावनाओं से वर मांगता है,उस मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस तीर्थ में भगवती चण्डिका के साथ ही भगवान शंकर तुंगनाथ रुप में पूजित होने के कारण इस तीर्थ का यश चारों ओर फैला हुआ है। लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान तुंगनाथ व मां चण्डिका यू तो समस्त जगत चराचर के देवी – देवता माने जाते हैं, मगर नौजुला के श्रद्धालु इन्हें अपना ईष्ट देवता, कुल देवता मानते है। तल्ला नागपुर के खूबसूरत हिल स्टेशन सतेराखाल को ही प्रकृति ने अपने अद्भुत छटाओं का अनोखा नव श्रृंगार किया है।
सतेराखाल मुख्य बाजार कई गांवों का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। सतेराखाल मुख्य बाजार में ही कई देवी – देवताओं के भव्य व दिव्य मन्दिर विराजमान है जिनमें पूजा – अर्चना करने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है तथा मनुष्य को परम पिता परमेश्वर की सत्ता का आभास होने लगता है। भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका का भक्त जब सतेराखाल से नारी गाँव की ओर पर्दापण करता है तो सीढीनुमा खेत – खलिहानों की लहराती हरियाली को दृष्टिगोचर करने से आत्मज्ञान हो जाता है । जब मनुष्य भगवान तुंगनाथ व माँ भवानी की तपस्थली नारी गाँव पहुंचते है तो प्रकृति के सुरम्य और स्वच्छन्द वातावरण मन को मोह लेता है परिणाम स्वरूप नारी गाँव के चारों ओर खेतों, वनों, पर्वतों को देखने की लालसा बार – बार मन में बनी रहती है। लोक मान्यताओं के अनुसार नारी गाँव में स्थित मन्दिर का निर्माण 1280 ई के लगभग हुआ था, इस मन्दिर में स्थापित मूर्तियां दक्षिण शैली की बनी हुई है , जिसमें पार्वती, दुर्गा व देव पंचायत की मूर्तियां कलात्मक उदाहरण है। नारी गाँव के मध्य चौक में स्थित यह मन्दिर 15 अंश पर बाई ओर झुका है जो कि लगभग 450 वर्ष पूर्व मन्दिर की नींव धसने के कारण झुका था। मन्दिर के आगे देव सभा भवन खण्ड में भगवती नारीदेवी विराजमान है जिसका निर्माण 1918 में बताया जा रहा है। मन्दिर के गर्भगृह में भगवान शंकर तुंगनाथ स्वरूप पूजित है । मन्दिर प्रागण में यज्ञ कुण्ड तथा बाई तरफ शिव – पार्वती के महल बने है। मन्दिर के बाहरी किनारे पर पंच देव पाण्डवों के अस्त्र – शस्त्र विराजमान है । मन्दिर के दायीं ओर सुरई का विशाल वृक्ष है जिस पर नाना प्रकार की पक्षियां रात्रि प्रवास कर अपने मधुर कोकिलो से शिव – शक्ति की महिमा का गुणगान कर अपनी मोक्ष की कामना करती है । मन्दिर परिसर में ही क्षेत्रपाल जी का मन्दिर विद्यमान है जिनकी पूजा का अभीष्ट फल मिलता है। भगवती चण्डिका के नारी गाँव आगमन की कई लोक मान्यतायें है। नारी गाँव में विराजमान भगवान तुंगनाथ व भगवती चण्डिका की दिवारा यात्रा व दिवारा यात्रा के समापन पर बन्याथ की परम्परा युगों पूर्व की है। आज भी भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका दिवारा भ्रमण कर धियाणियों व श्रद्धा श्रद्धालुओं को आशीष देते है। इस तीर्थ में समय – समय पर विशाल अनुष्ठानों को आयोजन कर विश्व कल्याण की कामना की जाती है, जिसमें नारी, खतेणा,स्यूपुरी व सतेरा के ग्रामीणों व पोला,मयकोटी, थलासू व दरम्वाडी के विद्वान आचार्यों का अहम योगदान रहता है। महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका को आरसे अर्पित करने की परम्परा प्राचीन है।
- भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका के दरबार में जो श्रद्धालु सच्ची कामना से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है उसे मनवाछित फल की प्राप्ति होती है! उनका कहना है कि भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका का पावन दरवार दया के सागर के समान है।
अनिल प्रसाद मलवाल,कामेश्वर प्रसाद मलवाल, मन्दिर के पुजारी
- भगवान तुंगनाथ व माँ चण्डिका के पावन तीर्थ में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन निरन्तर जारी रहता है तथा इस तीर्थ को भी कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे है।
- सामाजिक कार्यकर्ता गम्भीर सिंह बिष्ट
- लक्ष्मण सिंह नेगी,वरिष्ठ पत्रकार,ऊखीमठ