‘खेल’ करके’ फिर खेल करने में’ जुटा आबकारी विभाग

देहरादून। एडवोकेट और समाजसेवी विकेश सिंह नेगी आरटीआई के जरिए उत्तराखंड के तमाम विभागों में फैले भ्रष्टाचार और गड़बड़घोटालों को समय-समय पर उजागर करते रहते हैं। कई मामलों की लड़ाई वह अपने स्तर से सूचना आयोग और कोर्ट तक लड़ रहे हैं। वहीं ताजा प्रकरण राज्य के आबकारी-पुलिस सहित कई विभागों में फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे ऊर्दू अनुवादकों से जुड़ा है। इस प्रकरण में विकेश सिंह नेगी ने उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड राज्य के तमाम विभागों से आरटीआई के जरिए महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई है। यह जानकारी काॅफी महत्वपूर्ण है और पूरे फर्जीबाड़े का खुलासा करती है। विकेश नेगी द्वारा इस जानकारी से तमाम विभागों को अवगत कराया गया लेकिन ऊर्दू अनुवादकों की फर्जी नियुक्ति और लगातार दिये जा रहे प्रमोशन पर आलाअधिकारियों ने चुप्पी साधी हुई है। कोई न कुछ बोलने को तैयार है न कार्रवाई के लिये फाइल चलाने के लिये। ऊर्दू अनुवादकों की फर्जी नियुक्ति का मामला संज्ञान में होते हुए भी इनको प्रमोशन देने की तैयारी चल रही है।
ऊर्दू अनुवादक को प्रमोशन दिये जाने का एक प्रकरण विकेश सिंह नेगी के संज्ञान में आया है। विकेश सिंह नेगी ने बताया कि यह प्रकरण आबकारी विभाग से जुड़ा हुआ है। आबकारी विभाग में तैनात ऊर्दू अनुवादक को एक बार फिर प्रमोशन दिये जाने की तैयारी की जा चुकी है। विकेश नेगी ने कहा कि उन्हें विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है आबकारी विभाग में तैनात ऊर्दू अनुवादक सैयद वसी रजा जाफरी को प्रमोशन दिये जाने के लिये डीपीसी की फाइल चल चुकी है। विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि पूरा प्रकरण आबकारी आयुक्त के संज्ञान में होते हुए कि जब ऊर्दू अनुवादकों की नौकरी ही फर्जी है तो उन्हें किस आधार पर प्रमोशन दिया जा रहा है। यह आबकारी आयुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है। ऐसे कैसे हो सकता है आबकारी आयुक्त के संज्ञान में पूरा मामला होते हुए भी उन्हें प्रमोशन दिया जा रहा हो। क्या आबकारी आयुक्त के अधीनस्त उन्हें गुमराह कर रहे हैं।
विकेश सिंह नेगी ने कहा जिस ऊर्दू अनुवादक सैयद वसी रजा जाफरी को प्रमोशन दिये जाने को लेकर डीपीसी की फाइल चल रही है। विकेश नेगी ने बताया कि उन्हें आरटीआई के जरिए जो  जानकारी मिली है उसके मुताबिक सैयद वसी रजा जाफरी की नियुक्ति वाराणसी में ऊर्दू अनुवादक/कनिष्ठ लिपिक के पद पर हुई। इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि उर्दू अनुवादकों के पद आबकारी विभाग के लिये बुंदेलखंड और उत्तराखंड नहीं थे। विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश  में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर कैसे आज तक इन पदों पर कर्मचारी सरकारी सेवाओं का लाभ ले रहे हैं। आखिर कौन है वह जिसकी मिलीभगत से सरकार को करोड़ो रूपये का चूना हर माह लग रहा है। विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि उनकी लड़ाई उत्तराखंड के उन सैकड़ों बेरोजगार युवाओं की लड़ाई है जो रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों की खाक छान रहे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को उर्दू अनुवादकों की नियुक्ति के साथ ही सभी विभागों में जांच करानी चाहिए कि कहीं कोई और भी तो फर्जी तरीके से सरकारी नौकरी तो नहीं कर रहा है। यही नहीं जिस किसी ने भी फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है उसकी रिकवरी के साथ ही उसकी संपत्ति की जांच और उसे जेल होनी चाहिए।

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