सम्बधों में मधुरता का अहसास दिलाते हैं त्यौहार

देहरादून। त्योहार व्यक्ति के जीवन मे उत्साह एवं उमंग का एक अनूठा प्रतीक है। त्योहार एक ओर जहां भारत की समृद्व सांस्कृतिक विरासत की अभिव्यक्ति का माध्यम है, वही इन त्योहारों के माध्यम से समाज में समरसता स्थापित करते हुए व्यक्ति के जीवन मे ऊर्जा का संचार होता है। व्यक्ति के जीवन मे संम्बंधों का मजबूत आधार तथा अनूठा अहसास केवल त्योहार ही है।
व्यक्ति अपने जीवन मे अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों स्थितियों में एक जैसा बना रहना चाहता है। इसके लिए वह अपनी क्षमता व बुद्वि-विवेक का भरपूर उपयोग करता है। इस श्रम से प्राप्त परिणाम द्वारा वह अपने कर्मपथ का निर्धारण करता है और आगे बढता है। जीवन के इस प्रयोग में वह कई बार सफल तो कई बार विफल भी होता है। यह कहना है गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के अस्सिटेंस प्रोफेसर डाॅ शिवकुमार चौहान का।
उनका कहना है कि सफलता तथा विफलता के इस क्रम मे व्यक्ति की मानसिक ऊर्जा का कम अथवा ज्यादा व्यय निर्भर करता है और व्यक्ति की वृत्तियों मे परिवर्तन संभव होता है। इन वृत्तियों के द्वारा ही व्यक्ति की आदतों का निर्माण होता है जो बाद में व्यवहार मे रूपान्तिरित होता है। इसलिए इस दिन विधि-विधान से पूर्णिमा के दिन प्रातः काल हनुमान जी व पित्तरों का स्मरण कर व चरण स्पर्श करते हुए जल, रोली, मौली, धूप, फूल, चावल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा आदि चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए। भोजन से पूर्व घर के सब पुरुष व स्त्रियां राखी बांधे। बहनें अपने भाई को राखी बांधकर तिलक करें व गोला नारियल दें। भाई बहन को प्रसन्न करने के लिए रुपये अथवा यथाशक्ति उपहार दें। मान्यता है कि राखी में रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए। इस प्रकार यह पौराणिक कथा एवं व्यवहार से जुडेे मनोवैज्ञानिक पहलू इस बात की ओर इशारा करते है कि सम्बंधों का जीवन में अतिविशेष महत्व है। यही संबंध व्यक्ति के व्यवहार मे परिवर्तन का आधार है। अतः सम्बधों की मधुरता का अहसास त्योहार के द्वारा संभव है।