मनवांछित फल प्राप्ति का द्वार है फलेश्वर महादेव

ऊखीमठ । देव सेनापति कुमार कार्तिकेय की तप स्थली क्रौंच पर्वत की तलहटी में बसा तल्ला नागपुर क्षेत्र प्राचीन काल से दुर्गम, निर्जन, शान्त और एकान्त स्थान होने के कारण ऋषि – मुनियों की तप स्थली रही है।
तल्ला नागपुर के पग – पग पर कई देवी – देवता विश्व कल्याण के लिए आज में तपस्यारत है। तल्ला नागपुर के प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक तीर्थ स्थानों ने भी आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के जिज्ञासुओं को अपनी ओर अधिक आकर्षित किया है, इसीलिए यह पावन माटी महापुरुषों की जन्म व कर्मस्थली रही है! तल्ला नागपुर के प्रवेशद्वार व पतित पावनी, दुख तारिणी अलकनन्दा, मन्दाकिनी के संगम स्थल से लेकर कार्तिक स्वामी तीर्थ तक हजारों देवी – देवताओं विराजमान है मगर चोपता फलासी में तपस्यारत फलेश्वर महादेव तीर्थ की अपनी विशिष्ट पहचान है। इस तीर्थ में भगवान शंकर तुंगनाथ रूप व मां भवानी चण्डिका रुप में विराजमान है, शिव व शक्ति के एक साथ विराजमान होने से इस तीर्थ में हर भक्त की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। फलासी गाँव में विराजमान भगवान तुंगनाथ को न्याय का देवता माना जाता है। यह तीर्थ भगवान कार्तिक स्वामी की तपस्थली क्रौंच पर्वत से निकलने वाली सुर गंगा के किनारे बसा है!फलेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से ही मानव ह्रदय के सुकोमल मधुर भावों का उदय होता है। इस तीर्थ से प्रकृति के वैभव को निहारने से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक शक्ति का आभास होने लगता है। भगवान तुंगनाथ व चण्डिका भवानी के दर्शन मात्र से अध्यात्म भाव जागकर सच्चे आनन्द की प्राप्ति होती है । इस तीर्थ के निकट प्रवाहित होने वाली सुर गंगा नदी का कलरव, पक्षियों का सुन्दर कूजन,कोयलों की सुन्दर कूहू – कूहू, झरनों का झर – झर नाद, आकाश को छूने वाली चोटियों की सुन्दरता तथा विद्वान आचार्यों के वेदपाठ की मधुर धुने मानव को भगवत मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देते है।
भगवान तुंगनाथ व चण्डिका भवानी की दिवारा यात्रा की परम्परा प्राचीन है। लोक मान्यताओं के अनुसार समय – समय पर दिवारा यात्रा का आयोजन किया जाता है। भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली चारों दिशाओं का भ्रमण कर दिशा धियाणियो को आशीष देती है तथा विशाल यज्ञ के साथ दिवारा यात्रा का समापन होता है पुनः समय पर भगवती चण्डिका के दिवारा यात्रा का शुभारम्भ होता है तथा चण्डिका भवानी भी चारों दिशाओं का भ्रमण कर प्राणी जगत को आशीष देती है तथा वन्याथ के साथ चण्डिका भवानी के दिवारा यात्रा का समापन होता है। लोक मान्यताओं के अनुसार भगवान तुंगनाथ के प्राकृतिक स्रोत देवली से लेकर मन्दिर परिसर तक 365 देवी – देवताओं के मन्दिर विराजमान थे मगर 17 वी सदी में आये भूकम्प से अधिकांश मन्दिर क्षतिग्रस्त हो गये थे। पूर्व में मन्दिर के हक – हकूक सुरक्षित करने के लिए पंच कोटी को अधिकार था मगर नये भूमि बन्दोबस्त के बाद 13 गाँव शामिल किये गए है। फलेश्वर महादेव के नाम से इस गाँव का नाम फलासी पड़ा। फलेश्वर महादेव के दरवार में मनौवाधित फल की प्राप्ति होती है। इस तीर्थ में पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय रूद्रप्रयाग से पोखरी मोटर मार्ग पर 20 किमी दूरी बस या निजी वाहन से चोपता हिल स्टेशन पहुँचा जा सकता है । चोपता को प्रकृति ने अपने बेपनाह खूबसूरती से नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है । चोपता से लगभग डेढ़ किमी दूरी तय करने के बाद भगवान तुंगनाथ व चण्डिका भवानी की तपस्थली फलासी पहुंचा जा सकता है। चोपता से फलासी तक के भूभाग के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारने से मानव जीवन के मोह – माया को त्याग कर प्रभु की अलौकिक सत्ता में लीन हो जाता है। चोपता से फलासी तक सीढीनुमा खेत – खलिहानों की हरियाली, चौड़ पर्वत की अपार वन सम्पदा, सुर गंगा नदी की कल – कल निनाद मन को आह्लादित कर देता है ! पर्यटन विभाग द्वारा इस तीर्थ को कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट से जोड़कर क्षेत्र के चहुंमुखी विकास की पहल शुरू कर दी गयी है।
भगवान तुंगनाथ मन्दिर के पुजारी त्रिलोचन भटट्, बिशाम्बर भटट्, विशेश्वर भटट्, अनसोया प्रसाद भटट् का कहना है कि फलासी मन्दिर में विराजमान भगवान तुंगनाथ की पूजा – अर्चना व जलाभिषेक का विशेष महात्म्य मिलता है इसलिए वर्ष भर यहाँ श्रद्धालुओं का आवागमन व धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन निरन्तर होता रहता है। जिला पंचायत सदस्य सुनीता बर्तवाल, प्रधान बबीता भण्डारी, सरिता राणा, पंचम सिंह नेगी, पूर्ण सिंह खत्री, महेन्द्र सिंह नेगी, भूपाल सिंह नेगी, बृजमोहन सिंह, दुर्गा करासी, धीर सिंह नेगी, यशवन्त सिंह नेगी, प्रताप सिंह मेवाल, पवन सिंह बर्तवाल, कुलदीप बर्तवाल, बलवन्त जगवाण का कहना है कि फलासी महादेव की महिमा का गुणगान जितना करे उतना कम है क्योंकि इस पावन तीर्थ में हर श्रद्धालु को मन इच्छा अनुसार फल की प्राप्ति होती है।
- लक्ष्मण सिंह नेगी
- वरिष्ठ पत्रकार, ऊखीमठ