एकेश्वर महादेव: जहां होती है हर भक्त की मनोकामना पूरी

देहरादून।  देवभूमि में हिंदुओं के विश्व प्रसिद्ध कई धाम होने के साथ ही यहां अनेक सिद्ध पीठ एवं शैव पीठ भी हैं,जो सदियों से श्रद्धालुओं के आस्था और भक्ति के केंद्र रहे हैं । उत्तराखण्ड में ऐसा ही एक शैव पीठ है एकेश्वर महादेव, जिन्हें स्थानीय भाषा में ईगासर देवता के नाम से पुकारा जाता है।  श्रावण मास में  यहां दूर दराज से श्रद्धालू महादेव के दर्शन करने आते हैं। एकेश्ववर महादेेव अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। आइये श्रावण मास के  अंतिम सोमवार को हम ले चलते हैं  आपको एकेश्वर महादेव के दर पर।  समुंदर तल से 1575 मीटर की ऊंचाई पर बसा एकेश्वर  बेहद रमणीय स्थानों में से एक है, यहां की हरियाली, हिमालय दर्शन, सूर्यास्त का मोहककारी दृश्य व कार्निवाल के मोहक दृश्य सबको आकर्षित करते हैं। यहां अनेक  दार्शनिक, धार्मिक स्थलों के साथ ही, सैर सपाटे के लिए कई पिकनिक स्पॉट है। एकेश्वर बाज़ार के पातल ग्रामसभा में  विराजमान हैं सिद्धपीठ एकेश्वर महादेव। मान्यता है कि एकेश्वर महादेव निसंतान दम्पत्ति की गोद को हराभरा करते हैं। इसलिए इस सिद्ध पीठ को संतान दत्तात्रेय के रूप में भी जाना जा है। हर सावन में यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

  • शुभम करोति कल्याणम, आरोग्यम, धन, सम्पदा।। शत्रु ,बुद्धि विनाशाय,दीपज्योति नमोsस्तुते।।

एकेश्वर शैव पीठ हज़ारों , हज़ारों साल प्राचीन है। कहा जाता है कि द्वापरयुग के महाभारत काल में पांडव एकेश्वर आए थे और उन्होंने यहां की प्राकृतिक सुंदरता के बीच  सकून के कुछ पल बिताए थे और  भगवान एकेश्वर की  स्तुति की थी।  810 ई के आसपास, आदिगुरु शंकराचार्य जब एकेश्वर आए थे तो उन्होंने यहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के साथ ही मन्दिर की स्थापना की थी। बार ,बार जीर्णोद्धार होने से मन्दिर का पौराणिक स्वरूप सदियों पहले ही समाप्त हो चुका है। मन्दिर के गर्भ गृह मेंं स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं, जो अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।

मान्यता के अनुसार सदियों पहले एकेश्वर महादेव मंदिर से बदरीनाथ मन्दिर तक सुरंग हुआ करती थी, जो किसी कारणवंश या फिर दैवीय आपदा के चलते बन्द हो गया।  पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने ताड़कासुर का वध किया तो एकेश्वर  महादेव एकेश्वर से ही ताड़केश्वर गए थे। एकेश्वर का अभिप्राय है कि बहुत से देवताओं की अपेक्षा एक ही ईश्वर को मानना, इस धार्मिक अथवा दार्शनिकवाद के अनुसार कोई एक सत्ता है जो विश्व का सृजन और नियंत्रण करती है, जो नित्य ज्ञान और आनन्द का आश्रय है, जो पूर्ण और सभी गुणों का आगर है, और जो सबका ध्यानकेंद्र और आराध्य है। एक देवता सिद्धांत यानी भगवान शिव के शैवपीठ के चलते ही इस स्थान का नाम एकेश्वर पड़ा होगा।
स्थानीय नागरिक  पंकज पांडेय बताते हैं कि शिवलिंग पर जो  गंगाजल, दूध आदि चढ़ाया जाता है वह पातल गॉव के पास एक स्थान पर आज भी टपकता है, जिसे जलहरी के नाम से जाना जाता है।  पांडेय के अनुसार गाँव में जो भी गाय दुधारू होती है, उसका दूध सर्वप्रथम जलहरी को अर्पित किया जाता है। उन्होंने रोचक जानकारी देते हुए बताया कि पूरे इलाके में पहले ठीक 12 बजे के बाद कोई भी किसान बैल को जोह पर नहीं रखता था, अगर कोई भूलवंश ऐसा करता था तो महादेव स्वयं बैलों को जोह से खोलने के लिए आवाज लगाते थे। इसलिए भगवान एकेश्वर महादेव को बोलता हुआ भोलेनाथ भी कहा जाता है।  पांडे ने पातल गॉव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पातल गाँव हमारे आराध्य देव एकेश्वर के पांव तले है। पातल का अर्थ पांव तले होता है, इसलिए इसका नाम पातल पड़ा। उन्होंने बताया कि गोरखाओं ने जब गढ़वाल पर आक्रमण किया था तो  गोरखा भी एकेश्वर महादेव की शरण में आए थे।

  • दिपता इगासर, दिपता, दैनु हवैजै।।
  • दुई गति बैसाख तेरा मेला उड़ी ग़ै।।

गते बैसाख को एकेश्वर में मेला लगता है, जिसे स्थानीय बोली में बिखोत कहते हैं। मेले में हज़ारों की भीड़ महादेव के दर्शन को उमड़ती है। कहा जाता है की पहले मन्दिर और मन्दिर प्रांगण में महिलाएं अपने पति के साथ संतान के लिए रातभर दीप जलाकर खड़ी रहती थी और भगवान भोलेनाथ की स्तुति करती थी। धीरे, धीरे इस परंपरा ने मेले का रूप ले लिया। इस दिन आसपास के गांवों के लोग खेत मे उगे नए अनाज का भोग शिव को लगाते हैं।

मन्दिर से कुछ दूरी पर ठंडे पानी की जल धारा बहती है, जिसे स्थानीय भाषा में मंगारा नाम से पुकारा जाता है। कहा जाता है कि मेले में जितनी अधिक भीड़ उमड़ती थी, उतनी ही जलधारा का पानी बढ़ता था। यह मंगरा वास्तु कला का बेहतर नमूना है। इसका निर्माण सदियों पहले किया गया है और इसके निर्माण में तराशे गए भारी भरकम आकर्षक पत्थरों का उपयोग किया गया है।

  • प्रीति नेगी।
    सम्पादक, जनमंच टुडे
    वेबपोर्टल, वेब न्यूज़ चैनल

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