पौष्टिक व शक्ति का खजाना है अरसा

देहरादून। हमारे पहाड़ की पारंपरिक मिठाई अरसा स्वादिष्ट होने के साथ ही इंसान के शरीर में ऊर्जा और शक्ति बढ़ाने में कारगर होता है। पहाड़ में अरसा अलग महत्व रखता है। भले ही रेडीमेड मिठाई का जमाना क्यों न आ गया हो, लेकिन आज भी गढ़वाल में अरसा का रुतबा कायम है। गढ़वाल में शादी-विवाह के खास मौकों पर कलेऊ देने की अनूठी परम्परा सदियों से चली आ रही है, यह परम्परा आज भी पहाड़ में जीवित है। कलेऊ में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां होती हैं, जिन्हें विदाई के अवसर पर नाते-रिश्तेदारों को दिया जाता है। इनमें सबसे लोकप्रिय मिठाई है अरसा। आइए आपको बताते हैंL एक महीने बाद, अरसे का स्वाद ताउम्र एक जैसा रहेगा। आज अरसा बनाने की कला हर गढ़वाली भूल रहा है। गढ़वाली हम इसलिए कहेंगे क्योंकि ये डिश आपको उत्तराखंड केे गढ़वाल में ही मिलेगी। अब सवाल ये है कि आखिर अरसा सिर्फ गढ़वाल में ही कैसे आया। माना जाता है कि अरसा गढ़वाल में सबसे पहले दक्षिण भारत से आया। अरसा दक्षिण भारत का व्यंजन माना जाता है। इसे दक्षिण भारत में अरसालु नाम से पुकारते हैं। कहा जाता है कि जगदगुरू शंकराचार्य ने बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों का निर्माण करवाया था। इसके अलावा गढ़वाल में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनका निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। इन मंदिरों में पूजा करने के लिए दक्षिण भारत के ही ब्राह्मणों को रखा जाता है। कहा जाता है कि 9वीं सदी में दक्षिण भारत से ब्राह्मण गढ़वाल में अरसालु लेकर आए थे। दरअसल अरसा काफी दिनों तक चल जाता है, इसलिए वो पोटली भर-भरकर अरसालु लाया करते थे। धीरे धीरे इन ब्राह्मणों ने ही स्थानीय लोगों को ये कला सिखाई। इतिहासकारों की मानें तो बीते 1100 साल से गढ़वाल में अरसा एक मुख्य मिष्ठान और परंपरा का धोतक माना ये दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मीठी चीज है। फर्क क्या है ये भी जरा जान लीजिए। गढ़वाल में गन्ने का गुड़ इस्तेमाल होता है और कर्नाटक में खजूर का गुड़ इस्तेमाल होता है। बस यही थोड़ा सा फर्क है स्वाद में। धीरे धीरे ये गढ़वाल का यादगार व्यंजन बन गया। इसके अलावा अरसा तमिलनाडु, केरल, आंध्र, उड़ीसा और बंगाल में भी पाया जाता है। कहीं इसे अरसालु कहते हैं और कहीं अनारसा। लेकिन आज हम इसे भूलते जा रहे हैं। अरसा हमारी शरीर के लिए बेहद पौष्टिक आहार होने के साथ ही गढ़वाल के संस्कृति में रचा बसा हुआ है।