धारी देवी : जहां तीन रूप में दर्शन देती हैं माता रानी

 देहरादून। देवभूमि में हिंदुओं के विश्व प्रसिद्ध कई धाम होने के साथ ही यहां अनेक सिद्ध पीठ एवं शैव पीठ भी हैं,जो सदियों से श्रद्धालुओं के आस्था और भक्ति का केंद्र रहे हैं । उत्तराखण्ड  में काली माता को समर्पित एक ऐसा ही मन्दिर है माँ धारी देवी। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी माना जाता है । मां धारी देवी  को श्रद्धालुओं की रक्षक देवी भी माना जाता है। कहा जाता है कि  माता प्रतिदिन अपना रूप बदलती है। प्रात: काल में कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा रूप धारण करती हैं। पौडी जनपद में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर  श्रीनगर, रुद्रप्रयाग के मध्य कलियासौड़ में पतित पावन अलकनंदा के तट पर विराजमान है। यह मन्दिर देवी काली  को समर्पित है। धारी देवी को देवभूमि की पालक और संरक्षक माना जाता है। माँ धारी देवी जनकल्याणकारी होने के साथ ही दक्षिणी काली माता भी कहा जाता है । मान्यता है कि माता रानी की मूर्ति का ऊपरी आधा भाग सदियों पहले अलकनंदा नदी में बहकर यहां आया था तब से मूर्ति यही पर विराजमान हैं। धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है।  जबकि मूर्ति का निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जहां माता की काली के रूप में आराधना की जाती है। मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग में स्थापित  की गई थी। प्रचलित कथा व मान्यता के अनुसार एक रात जब भारी बारिश हो रही थी और अलकनंदा अपने उफान पर थी। इसी दौरान धारी गाँव के समीप ही एक स्त्री की चीखने, चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। गाँव वाले आवाज सुनकर जहां से आवाज आ रही थी उस ओर दौड़ पड़े। जब लोग उस स्थान पर पहुँचे तो देखा कि पानी में  एक मूर्ति तैरती दिखाई दी और आवाज मूर्ति से आ रही थी। इसके बाद गांववासियों ने उफनाती अलकनन्दा से उस मूर्ति को निकाल लिया। मूर्ति निकालने के बाद कुछ ही पल में मूर्ति से आवाज आई और मूर्ति ने उसी जगह पर स्थापित करने के आदेश ग्रामीणों को दिया। मूर्ति का आदेश मिलने पर  ग्रामीणों ने मूर्ति को अलकनन्दा के तट पर स्थापित कर दिया। धारी गाँव के समीप स्थापित होने केे बाद लोगों ने इस स्थल को धारी देवी का नाम दिया। दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी सौतेली मां ने अपनी बेटी की हत्या करवा दी थी, जिससे उसका शीश सहित ऊपरी भाग अलकनंदा में बहता हुआ धारी गांव तक पहुंचा तो एक धुनार( नाविक) ने उसे  अलकनंदा के तट पर स्थापित कर दिया। भक्तों के अनुसार माता रानी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। माता सुबह  लड़की,  दिन में स्त्री, और सायं को बूढ़ी औरत के रूप में दर्शन देती  है । पुजारियों व स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से स्थापित है । कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में  विराजमान होती हैं, जबकि धारी देवी में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में है । मंदिर में स्थित प्रतिमाएँ साक्षात व जाग्रत के साथ ही पौराणिककाल से  विधमान है ।  दुर्गा पूजा व नवरात्री में विशेष पूजा मंदिर में होती है। यह धारी देवी मंदिर के महत्वपूर्ण त्योहार हैं । मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्री में हजारों श्रद्धालु अपनी मनौतियों लेकर दूर-दूर से माता के दर पर पहुँचते हैं ।

  • प्रीती नेगी।

 

 

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