पहाड़ में स्वास्थ्य सेवा में सुधार केवल ख्वाब

चुनाव में स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा एक अहम मुद्दा रहा है चुनावों के पास आते ही तमाम पर्टियां इस मुद्दे को भुनाने का कोई मौका नही छोडती लेकिन क्या इससे पहाडी और मैदानी क्षे की स्वास्थय सेवाओं में सुधार हुआ है इस बात को आकडोें के जरिए समझते है। ऐसा नही है कि सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। सरकार द्वारा पहाड़ों में डाक्टरों की तैनानी के लिए योजना चलाई गई है जिसके तहत श्रीनगर और हल्द्वानी मेडिकल कालेज में 15 हजार रुपये सालाना फीस लेकर युवाओं को डाक्टर बनने की सुविधा दी जा रही है। योजना के अनुसार इन डाक्टरों को पांच साल तक पहाड़ पर सेवा देने का अनुबंध होता है। लेकिन समस्या तब आकर खडी हो जाती है जब डाक्टर अनुबंध का पालन नहीं करते, दम तोड़ती स्वास्थ्य सेवा में आक्सीजन देने के लिए उत्तराखंड सरकार सरकारी मेडिकल कालेजों के छात्र को फीस में भारी छूट देकर उन्हें डाक्टर बनने की सुविधा दे ही रही है लेकिन डाक्टर पहाडों में टिक नही पा रहे है ऐसे में अब सरकार की प्रथमिकता यह होनी चाहिए की वह ऐसी नीति बनाए जिससे पहाडों में डाक्टरों के पलायन को रोका जा सके क्योंकि अभी तक डाक्टरों को पहाड़ में टिकाने के लिए सरकार की तरफ से ऐसी काई ठोस नीति नहीं बनी है। जब तक ठोस नीति नहीं बन जाती है तब तक पहाड़ में स्वास्थ्य सेवा में सुधार केवल एक ख्वाब बनकर रह जाएगा। कई जिले ऐसे भी है जहां पर दर्जनभर से अधिक अस्पतालों में एक भी डाक्टर कार्यरत नहीं है। ऐसे में मरीजों को मजबूर में उपचार के लिए घंटों का सफर तय करके बड़े शहरों का रुख करना पड़ रहा है। अस्पतालों के डाक्टर गायब
है मरीज परेशान हैं। दुरूह पर्वतीय क्षेत्र में पर्याप्त चिकित्सक हैं न स्टाफ। वहीं चिकित्सा उपकरणों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। उत्तराखंड राज्य के पूरे 20 साल हो चुके है कई सरकारें आई और गई लेकिन राज्य गठन से अब तक पहाड़ में स्वास्थ्य का बेहतर ढांचा तैयार नहीं कर पाई हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अभी भी स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का भी अभाव है। इसी कारण अपंग होती स्वास्थ्य सेवाएं के चलते लोगों को इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता है। अभी हाल ही में कोरोना महामारी के चलते भी स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था सामने आईआइसीयूए वेंटिलेटर आदि की उपलब्धता
राज्य में सीमित है। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कई मामले ऐसे आए है जहां पर मामूली बीमारी पर भी लोगों को सैकड़ों किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है। दुरूह पर्वतीय क्षेत्रों में स्थिति और खराब है। देश भर में डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं पर नजर रखने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में लाखों डाक्टर पंजीकृत तो हैं लेकिन इनमें से न के बराबर डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में तैनात हैं।