पौड़ी की अंजली ने छुआ आसमां
देहरादून। कौन कहता है आसमा में सुराख नही हो सकता, एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारो, इस कहावत को अपने मेहनत और लगन के बल पर रिखणीखाल की अंजलि शाह ने चरितार्थ कर दिखाया है, अगर मन मे लग्न और हौसला हो तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।
अंजलि ने रिखणीखाल जैसे दूरस्थ इलाके से निकलकर उसने पुरुषों के उस वर्चस्व को ध्वस्त किया है, जिस पर सिर्फ पुरुष ही काम किया करता था। रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट बनकर अंजलि ट्रेन को ट्रेक पर सरपट दौड़ा रही है।
पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल ब्लॉक के एक छोटे से गाऊं बामसू गांव की अंजलि शाह ने अपनी हिम्मत ओर मेहनत के दम पर अपना बचपन का सपना साकार कर लिया है। अंजलि बचपन से ट्रेन चलाने की तमन्ना रखती थीं। इसके लिए उन्होंने लग्न से मेहनत की, और आज अंजलि असिस्टेंट लोको पायलट बनकर इतिहास रच चुकी हैं। मुख्य चालक की मदद से ट्रेन को दौड़ा रही हैं। 23 साल की अंजलि उत्तराखंड की पहली महिला ट्रेन चालक हैं। बेसिक ट्रेनिंग के बाद अंजलि को बतौर असिस्टेंट लोको पायलट नियुक्त किया गया है।
छोटे गांव से निकल कर ट्रेन चलाने का सफर अंजलि के लिए कभी आसान नहीं रहा। अंजलि ने बचपन में ट्रेन देखी थी, और तभी तय कर लिया था कि बड़ी होकर वो ट्रेन चलाएगी। ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां आज भी पुरुषों का दबदबा माना जाता है, ऐसे में कई बार लोगों ने अंजलि का मजाक भी बनाया, उन्हें कोई दूसरा काम करने की सलाह भी दी, पर अंजलि ने ठान लिया था कि कोई कुछ भी कहे वो बनेंगी तो सिर्फ ट्रेन चालक। वो हारी नहीं और अपने जज्बे को कायम रखा और मेहनत के बल पर मुकाम हासिल किया। एक लापरवाही हजारों जान पर भारी पड़ सकती है, यही वजह है कि लोको पायलट को नियुक्ति से पहले कठिन ट्रेनिंग से गुजरना होता है,और अंजलि ने यह कठिन परीक्षा पास की। अंजलि ने साबित कर दिया कि अगर लड़कियां ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं, हर चुनौती को जीता जा सकता है।