संकट में कस्तूरी की केदार पत्ती
ऊखीमठ। लगभग 1600 मीटर से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई वाले भूभाग पर उगने वाले केदारपत्ती (नैरपाती) का अत्यधिक दोहन होने से केदारपाती की प्रजाति विलुप्त होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन का जिम्मा सम्भाले वन विभाग व स्वयमसेवी संस्थाओं का आज तक इस ओर ध्यान न देेना यक्ष प्रश्न बना हुआ है, अगर, आने वाले समय में यदि प्रदेश सरकार के निर्देश पर वन विभाग द्वारा केदारपत्ती के संरक्षण व संवर्धन के लिए पहल नहीं की गई तो देवभूमि से एक ऐतिहासिक वनस्पति विलुप्त हो जायेगी, जो कि आने वाले समय के लिए चिन्ता का विषय बन सकता है। केदारपत्ती को वनस्पति विज्ञान की भाषा में स्किमिया ल्यूरोला नाम से जाना जाता है तथा कस्तूरी मृग का यह प्रिय घास माना जाता है। केदारपत्ती के सुगन्धित होने के कारण कस्तूरी मृग केदारपत्ती को बड़े लगाव से चरती है। केदारपत्ती पेड़ नहीं बल्कि पौधे के रूप पाया जाता है! केदारपत्ती लगभग 1600 से 3000 मीटर की ऊंचाई में पायी जाती है। कई तीर्थों में केदारपत्ती को वेलपत्री के रुप में अर्पित किया जाता है। केदारपत्ती केदारनाथ पैदल मार्ग पर घिनुरपाणी, चोपता – तुंगनाथ पैदल मार्ग, टिगरी, राकसीडांडा तथा कार्तिक स्वामी की तलहटी में बसे ढाढिक में उगती है। केदारपत्ती का निरन्तर दोहन होने तथा कस्तूरी मृर्गो के निरन्तर चरने से केदारपत्ती विलुप्त होने की कंगार पर है। कार्तिक स्वामी की तलहटी में बसे ढाढिक की बात करे तो आज से लगभग 15 वर्ष पहले केदारपत्ती बहुत अधिक मात्रा में उगती थी, स्थानीय सूत्रों की माने तो कुछ लोगों के द्वारा केदारपत्ती का निरन्तर दोहन किया जा रहा है क्योंकि केदारपाती को एसीडिटी की दवाई में तथा धूप के निर्माण में प्रयोग होने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार केदारपत्ती के पौधों में पतझड़ 40 प्रतिशत होता है शेष पौधा वर्षभर हरा रहता है तथा केदारपाती के पौधे के लिए वर्ष भर नमी अनिवार्य होने चाहिए। कार्तिक स्वामी तीर्थ के पुजारी ताजवर पुरी का कहना है कि केदारपत्ती की प्रजाति धीरे – धीरे विलुप्त की कंगार पर है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। पर्यावरणविदों की माने तो यदि केदारपत्ती की प्रजाति विलुप्त होती है तो कस्तूरी मृर्गो की संख्या में गिरावट आ सकती है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनधिकारी अमित कवर का कहना है कि वन विभाग निर्देशालय द्वारा केदारपत्ती के संरक्षण व संवर्धन के लिए किसी प्रकार के निर्देश तो नहीं मिले है मगर भविष्य में जिस भी क्षेत्र में वनीकरण होगा वहाँ केदारपत्ती के पौधों को रोपित करवाने के प्रयास किये जायेंगे।
लक्ष्मण सिंह नेगी, वरिष्ठ पत्रकार ऊखीमठ।
